आवाज दो!!
कितनी चित्कारे
दब जाती है.
खो जाती है.
आवामो से दूर कही,
सन्नाटो में रह जाती है।
उन दबी हुयी चीत्कारों को,
जान दो.
हमें सुनाओ
इसु बनाओ.
टूटे, बिखरे
मिटे हुए शब्दों को,
एक आधार दो.
आवाज दो!!
दब जाती है.
खो जाती है.
आवामो से दूर कही,
सन्नाटो में रह जाती है।
उन दबी हुयी चीत्कारों को,
जान दो.
हमें सुनाओ
इसु बनाओ.
टूटे, बिखरे
मिटे हुए शब्दों को,
एक आधार दो.
आवाज दो!!
4 Comments:
aapke blog mein sangrahit kavitaayen bahut hi prakhar vichaar vyakt kar rahi hain...aur aapne sahi mein shabdon ko ek aawaaz dene ki koshish ki hai :))
good poem,
once again your words are crying..
BAHUT SUNDAR ...
Dhanyawaad Laxmi !
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