Friday, February 18, 2011

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मोटा को गुस्सा क्यों आता है ?

एक मेरा दोस्त है। प्यार से हम सभी उसे मोटा कहते है । मोटा नेट सैवी लोगो को ऐसे देखता है जैसे एक जमाने में गोरे लोग अश्वेत लोगो को देखा करते थे । मोटा मन ही मन बुदबुदाता है - ये साले नेट सैवी लोग किसी काम के नहीं है ।

मोटे के गुस्से के पीछे छुपे डर में मुझे सारे तानाशाही समाज का डर साफ़ दिखता है । बस १० रुपैया ले कर साइबर कैफे जायिये और एक राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय क्रांति में अहम् भूमिका निभा दीजिये, ऐसा इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था !

Wednesday, January 05, 2011

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कई मौसम बाद...

कई मौसम बाद आज ऑरकुट पर अपने कुछ टेस्टीमोनिअल्स पढ़ा तो लगा की जैसे एक बाल्टी प्यार से नहा लिया हूँ

Saturday, June 12, 2010

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गुब्बारे




Saturday, August 29, 2009

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बुलबुले



Saturday, July 04, 2009

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कैदी से सूरज का वादा

Sunday, June 14, 2009

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पहले से कई ज्यादा

याद है,
हम बातें करते हुए थकते ही नही थे?
अब हमारी खामोशिया
और नज़रे बातें करती है,
पहले से कई ज्यादा

अब बिना कहे-सुने ही
कहा-सुनी हो जाती है
सवाल खड़े हो जाते है,
पहले से कई ज्यादा

यू कोई चार मौसम बीते होंगे
इसी दिवार पर टंगी रहती थी अपनी तस्वीरे
दिवारे अब गुमसुम सी है,
पहले से कई ज्यादा

और ये देखो,
अभी भी कितने उत्साहित रहते है हम
पर शायद हर ढलते सूरज के साथ
लाचार होते गए है हम,
पहले से कई ज्यादा

Friday, June 12, 2009

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क्यो ??

पुराने ब्लॉग पर
धुल की एक परत क्यो नही जम जाती ?
पुराने फोटो के
अब रंग क्यो नही उड़ जाते?

यादे अब धुंधली क्यो नही होती है??

Saturday, March 28, 2009

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क्या पैसो से सबकुछ ख़रीदा जा सकता है?

अब ,
जब बिक जाते है ज़मीर
चंद सिक्को के लिए
बदल जाते है कानून
हरे नोट देखते ही
और खरीद ली जाती है
तमाम खुशियाँ
पैसो से ,
एक सवाल आज भी जिंदा है
क्या पैसो से
सब कुछ खरीदी जा सकती है ?
नही ,
नही खरीदी जा सकती
लोगो की मानसिकता ,
पैसो से


टाईम्स ऑफ़ इंडिया , जनवरी ५, २००५
संजय मेहता ( हीरे का व्यापारी ) ने सूरत के पुनागाय इलाके में ३.३८ लाख का एक बंगला ख़रीदा , पर नीची जाती का होने के चलते उसके पडोसियों ने बंगला छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया
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हम होंगे कामयाब

और फ़िर एक दिन ऐसा आएगा
सबकुछ स्वप्न सरीखे हो जाएगा
तब मस्त हवाए गाएंगी
मौसम जादू दिखलाएगा
मै जित की खुशी में नाचूँगा
चीखूंगा चिल्लाऊंगा
पल भर के लिए मै शायद
पागल सा हो जाऊँगा
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हम है कानून के रखवाले

हम करते है पर्दाफाश
झूठ का
और रखते है नज़र
कानून कोई तोड़ने न पाए
जाति धर्म की भावनाओं से ऊपर उठ
बस सत्य का पक्ष लेने का
संकल्प लेते है हम
पर ये क्या
हम में भी कही ,
अब भी जीवित है
छुआछुत की भावना


५ अगस्त , २०००
नई दिल्ली : इलाहाबाद के एक दलित जज ने सुप्रीम कोर्ट में कम्पलसरी रिटायर्मेंट के लिए अपील की तब उनके सक्सेसर ने उनका कोर्टरूम गंगाजल से धुलवाया !

Friday, March 27, 2009

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युवा मन की उड़ान

बादलो के पार शायद
और एक जहा होगा
सपनो में जो है देखा
सारा कुछ वहा होगा
साथ अपने साथ होगा
उस जहा उस देश में
दिल के तार बज पड़ेंगे
वैसे परिवेश में
हम युवा उड़ चले है
धरती अब पावो तले है
आँखों में सपने लिए हम
ख़ुद से कुछ वादे किए हम
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..पर शब्द नही है मेरे पास

सोचा दिल की व्यथा को
कागज़ पर उतारू
तुक लए और ताल से
उसे सवारू
दिल व्यथित है आज
तन्हाई है मेरे पास
परिस्थिति ने मुझे
किया मजबूर
सपने जब हकीक़त से टकराए
हो गए चकनाचूर

भावनाओ को व्यक्त करने के लिए
मै ढूंढ़ रहा हु
शब्दों को
लेकिन असमर्थ हु
उन्हें खोज पाने में

चेहरे पर उदासी है
दिल हार गया है
आंखों में आसू है
पर शब्द नही है मेरे पास
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चले है हम

चले है हम
आज यहाँ से
साथ नही कल अपना होगा
तुम होगे उधर कही,
दूर कही घर अपना होगा

दौड़ पड़े है आज खुशी में
कैदी जो छूटा जंजीरों से
पर क्या हमने तुमने सोचा ?
साथ में कितने रिश्ते नाते टूटे ?

याद तुम्हे भी आएगी
ये दुरी जब बढ़ जाएगी
आज सताते हम एक दूजे को
कल यादे हमें सताएगी
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होली जब भी आती है

होली के रंग में
रंगा चेहरा
किसका है ये चेहरा ?
ये नही पता
पता है बस ये
कि है कोई मदमस्त सा

फटे पुराने कपड़े पहने
रंग लगाने
है आ रहा कोई
ये गली के आवारा लड़के है?
या है कोई ख़ास ?
ये नही पता
पता है बस ये
कि है कोई उल्लास में

सचमुच
होली जब भी आती है
हर दूरियाँ मिट जाती है
फ़िर दिल से दिल मिल जाते है
हर दिल गीत खुशी के गाते है

Tuesday, March 24, 2009

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खेल राजनीति का

क्या तुम्हारे पास
शब्दों के जाल है ?
दो रंग के चेहरे?
एक अच्छा ऐक्टर ?
और छोटा ज़मीर ?
है तो फ़िर
एक मंच है
मंच जहा कोई
कैसा भी आए
बीच का रास्ता अपना लेता है
या फ़िर उस पार ही
अपना आसिया बना लेता है
जियो अपने लिए और उनके लिए भी
या फ़िर उसका दिखावा करो
तिकड़म लगा, किसी तरह खड़े रहो
डर किस बात का ?
अगर पकड़े गए
तो भी भुला दिए जाओगे
जल्द ही फ़िर से
ख़ुद को खड़ा पाओगे
हमें भी अपने अंधेपन का
एहसास नही होता
और तुम्हे भी ख़ुद के कारनामो पर
विश्वास नही होता
ये खेल राजनीती का
क्या सचमुच है इतना गन्दा
विश्वास नही होता

Thursday, March 12, 2009

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कमला करती है पूरी कोशिश

कमला करती है पूरी कोशिश
कोई जान न पाये उसकी बिरादरी
कमला करती है श्रृंगार
और करती है रोज स्नान
चाल ढाल भी अपनी
बिरादरी वालो से अलग
बना के रखती है
पर नौकरी के लिए
वो जब जाती है
उससे उसकी जाति
पूछ ली जाती है.
कमला करती है पूरी कोशिश
फ़िर भी हर बार
वह हार जाती है.


Wednesday, March 11, 2009

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हमारी गीत (Song Of Us)

एक कोशिश ,
आशा है,
जी लेंगे ,
जी भर के हम.

नही महज ये गीत ,जिसे हम गुनगुना रहे.
मिल गए है संग जो, वो दिल है गा रहे.

ये साथ न,छोडेंगे हम
आए भले, जितने सितम

सपनो में देखा था जैसा,
हो अपना जहा एक वैसा.
जी ले जीभर ,
इस जीवन को,
सोचा है हमने ऐसा.

थामे रहे ये हाँथ हम,
आओ सभी ले ये कसम.

Live as if you have to die tomorrow and learn as if you have to live forever ---(Arya)

Life is like playing a violin in public and learning the instrument as one goes on ---(Aashish)

ये मत सोचो की ज़िन्दगी में कितने पल है . ये देखो की हर पल में कितनी ज़िन्दगी है ----(vIx)

Life is just a mirror. what you see out there you must see inside of you. We make a living by what we get , we make a life by what we give. ---(Bhoju)

दिन शायद ऐसे भी आए,
ख़ुद को टुटा हुआ पाये.
याद करेंगे ,
शायद जो ये पल,
आँखें नम हो जाए.

याद रहे अपनी कसम,
थे साथ , है, रहेंगे हम.

ये साथ न ,
छोडेंगे हम
आए भले,
जितने सितम.

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Monday, March 09, 2009

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IIT की धड़कन

हम केजीपी (IIT KGP)अइनी,
आके इहवा पछतईनी. ()
देख इहवा के लाइफ ,
फ्रूस्त (frustrated) हो नी.
हो गईनी.

अब का करीं हम माई?
आगे कुआ बा, पीछे खाई.

हम केजीपी अइनी ,
आके इहवा पछतईनी.

दुनिया IIT KGP के नम्बर वन समझेला लेकिन मोस्ट ऑफ़ जनता इहा फ्रूस्त रहेला .
देखे के की भभुआ जिला के एगो लईका के एह बारे में का कहे के बा :

सोचनी हा मन से खूब पढ़ब,
आगे दुनिया में नाम करब .()
क्लास्वा में माई रे नींद आवेला ,
का जाने पेपर में का लिखब.

प्लान का रहे का कर दिहनी,
बींच मझधारवा में रह नी.

अब का करीं हम माई ?
आगे कुआ बा, पीछे खाई .

हम केजीपी अइनी,
आके इहवा पछतईनी .


जींदगी झंड होवेला इहवा, जींदगी झंड होवेला .

बबुआ हो, कहत रहनी हां नु की बोम्बे चाहे दिल्ली ले ,
काहे मनला हां ... ?

अकैडवे(Academics) खाली मखाइल बा ,
देहवो के हाल गडबडाइल बा.
खा के मेसवा के खानवा ,
जान में बन आइल बा.

वैलुओ आपन कुछु नाही बाटें,
डांटे कुकुरो दौड़ा के काटे ()

अब का करीं हम माई
आगे कुआ बा, पीछे खाई

हम केजीपी अइनी,
आके इहवा पछतईनी

देख सब होवेला , इहे में कोम्प्रोमैइज कर ल.
अरे दुनिया में दुःख सुख आई जाई अब इहे में जीए के बा ?
ललनवा के देखेला ? BIT Mesra में बा ,आ ओही में मस्त रहेला.
अरे भाई कर्नाटको से गइल गुजरल बा? देख बबुलवा के दस हज़ार के नौकरी लागल बा . तू काहे झूठो टेंसअनिया जाला?

आके इहवा पछतईनी.

अब का करीं हम माई?
आगे कुआ बा, पीछे खाई.

हम केजीपी अइनी,
आके इहवा पछतईनी .(रोते हुए )

मत रोअ मत रोअ
अब पछतावे से कुछु होई?
अरे जाए दा मरदे ते नाही इतनो ख़राब नइखे .
IIT हां IIT, दाल भात के कौर ना .

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Saturday, February 28, 2009

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दिल कबड्डी

एक पैग मारा
और पंख निकल आया.
दूजे पैग पे
दिल मेरा कही
उड़ चला।

सैटरडे नाइट
अखाडे में
हुई कबड्डी ई.....

Monday, October 13, 2008

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ओल्ड वाईन इन ए न्यू बाटल


Saturday, August 23, 2008

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उन दिनो..

जब हमारे पास कुछ खाली टाईम हुआ करता था,
तब हम ईमोशनल भी हुआ करते थे.
कम्ब्ख्त वक्त ,
ये तुने मुझे क्या बना दिया ?

Friday, April 18, 2008

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बहुत दिन हुए

..न वो कुछ बोली,
न हमने गुजारिश कि.
एक सच कि सजा,
कई झूठ से बढकर होती है.

Sunday, December 02, 2007

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ईरेज़र

इसबार मै जिदंगी,
पेंसिल से लिखूंगी.
और एक अच्छा सा ईरेज़र,
अपने पाकेट मे रखूंगी.
और पाकेट मे अपने,
एक इरेजर रखूंगी.

Monday, September 10, 2007

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अभिमान..

तुम्हारे शब्दो और
हरकतो पे लगाम लगाए
तुम्हारा अभिमान
मेरे सामने मुस्करा रहा था.
हैरान मै ही नही,
तुम भी थी.

Sunday, September 09, 2007

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न जाने क्यो....

तुम बूरे थे...
आखिर कैसे ??
ये मुझे याद है..
तुम्हारी अच्छाईयो को मै भूल गया...

न जाने क्यो ...

न जाने क्यो
मुझे याद है तुम्हारे शरारते
तुम्हारी शराफ़त को मै भूल गया...

Tuesday, July 24, 2007

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इजाज़त

बिन बताये अगर जाओगे,
और वापस आकर, दरवाजा खट खटाओगे.

चिटकलि बंद रखूंगी मैं.
जाने से पहले पुछा था?
आने की इजाज़त भी न पाओगे!

Sunday, May 06, 2007

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हर कोई , कही हार जाता है !

मुस्कराते चेहरो के पिछे , छिपा दर्द किसे नजर आता है ?
सचमुच ..
हर कोई, कही न कही हार जाता है !!

Thursday, March 15, 2007

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'एक दोस्ती कही खो गई'

किसने चुराया?
कौन जिम्मेवार?
आरोपों के सिलसिले में,
न जीत न हार.
वक्त ने दौड़ लगाई
और आखों के सामने से, ओझल वो हो गई
'एक दोस्ती कही खो गई'
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कैदी से सूरज का वादा

सूरज का मुझसे वादा था,
आज मेरी गालों पे चमकेगा.
पर बादलों का उसपे घेरा है,
और दूर दूर अँधेरा है।

बादलों को छाट दिए होता.
और सूरज मुस्कान लिए होता.
पर मुठ्ठी भिचे रह जाता हूँ.
कैदी होने का शोक मनाता हूँ।

Thursday, January 04, 2007

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आवाज दो!!

कितनी चित्कारे
दब जाती है.
खो जाती है.
आवामो से दूर कही,
सन्नाटो में रह जाती है।

उन दबी हुयी चीत्कारों को,
जान दो.
हमें सुनाओ
इसु बनाओ.
टूटे, बिखरे
मिटे हुए शब्दों को,
एक आधार दो.
आवाज दो!!

Monday, August 21, 2006

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श्रधा या पागलपन

ओ लाखो के सिहांसन बनवाने वालो,
एक बार साईं बाबा से पूछ तो लिया होता :
"सोने का सिहांसन चाहिए क्या"?
अगर वे हां कहते
तो वे साईं नही कसाई है

Sunday, August 13, 2006

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बेवफाई

मेरे पाव ज़मीन से कुछ ऊपर रहते है.
उड़ने की बातें करते है.
हां..हसीं सपनो की बातें करते है।

जबकि ज़िन्दगी सपने तोड़ने में मजा लेती है.
ज़िन्दगी हसीं है.
पर मेरे प्यार के बदले,ये कैसी वफ़ा देती है??



Wednesday, July 12, 2006

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7/11

मै आफ़िस से लौट रहा था
चर्चगेट से माटूंगा
लोकल ट्रेन मे
चारो तरफ़ मैने नज़र घुमायी

मौत से दो मिनट दूर
किसी के चेहरे पे भय नही था
आफ़िस के काम निपटा लेने के बाद
चेहरो पे सैटिस्फ़ैकस्न थी
घर जाने की जल्दी थी
और आखों मे कुछ सपने थे

एक धमाके मे सारे इमोशन्श विलीन हो गए

फ़िर किसी ने
मेरे चिथडो को बटोरा
और घरवालो को बताया
मेरी मौत के बारे मे.

Thursday, June 29, 2006

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मैं आउगां

तुम अपने सपनो को टुटने न दो
सम्भाले रखना
दिल से लगाकर

यादों की एक पुस्तक बनाकर
अपने सिरहाने रखना
और इस चाहत के सिलसिले को
कभी रुकने न देना

मेरे आने मे देर हो जाये
तो घडी कि तरफ़ ना देखना
और वादो पर से विश्वास उटने लगे
तो यादों के पन्ने पलटना

मेरा इन्तेजार करना
मैं आउंगा

Saturday, May 06, 2006

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और प्यार हो गया ....

कभी-कभी
छोटी सी बातें
दिल को है छु जाती
पर एकबार ही होती है ऐसी हलचल दिल में
जो ताउम्र थम नही पाती

रिश्तो के बनने बिगड्ने के खेल से
एक रिश्ता ही उपर उठ पाता है
अनजाने चेहरो के भीड मे
एक चेहरा ज़िन्दगी बन जाता है..

Monday, April 03, 2006

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रिश्ते -२

क्या अपना और क्या पराया??
जीवन तो है एक माया
निरन्तर परिवर्तन ही इसकी रीत है
फ़िर ये रिश्तो के बनने बिगडने से ,क्यो दुनिया भयभीत है??

Thursday, March 30, 2006

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आधी ज़िन्दगी

जो रोज कल की फ़िक्र मे,
अपना आधा दिन बिताते है,
वो आधी ज़िन्दगी ही जी पाते हैं
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मामला संगीन है!!!!!

जीवन रंगीन है,
फ़िर क्यो दुनिया गमगीन है??
जबकि खुशिया है चारो तरफ़.......मामला संगीन है!!!!!
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रिश्ते

रिश्ते टुट्ते नही , सिर्फ़ बदलते है,
साथ छुटने पर , है ये कैसा गम तुम्हे??
ताउम्र अकेले ही तो हम चलते हैं

Thursday, March 02, 2006

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जंगल मे आग लगी

जंगल मे आग लगी
भागो - भागो
जल जाओगे मोहन प्यारे
जागो - जागो

चिन्गारी भड्काइ जिस्ने
वो बच के निकल गया
आग की लपटो मे
सारा जंगल जल गया


सावन महीने मे
पत्झ्ड है आ गया
दिल्वालो के शहर मे
सन्नाटा छा गया

जंगल मे आग लगी
भागो - भागो
जल जाओगे मोहन प्यारे
जागो - जागो

Over 1 million people were killed in India's division.7 million Muslims and 5 million Hindus and Sikhs were uprooted in the largest and most terrible exchange of population known to history.

Lahore is often regarded as the City of open hearted people who are very friendly and great sense of humor.

Saturday, January 07, 2006

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त्रिश्ना

द््रश्टी का दोश नही
हमको ही होश नही
चकमा दे आती है
फ़िर गायब हो जाती है
तमाम खूशियां और गम
हम- तुम और हमारे सारे करम
महज होते है त्रिश्ना






"Life is an illusion albeit a persistent one"
: Albert Einstein

Wednesday, November 23, 2005

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सुनामी के बाद

उन्होंने
लाशो को,
जाति के आधार पर बांटा.
घायलों को,
जाति के आधार पर राहत पहुचाई।

राहत पहुचने वाले भी,
जाति के आधार पर बट गए.
सुनामी ने मचाई तबाही .
हजारो दीवारें तोड़ डाली.
और खड़ी कर गई जातियों के बीच,
हजारों दीवारे
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वास्तविकता

पर सच ये भी है,
जीवन स्थिर और
रुक सा नही जाता
किसी के जाने के बाद।

अतीत के पन्ने
धूमिल होते चले जाते है.
धीरे-धीरे,
नई-नई खुशियाँ
पुराने गमो को कम कर देती है.
ऐसे दिन भी आए
जब एक पल भी
आपकी याद न आई हो.
और आज इतने दिनों बाद,
अचानक आंसू फुट पड़े.
पर क्या ये दो बूँद आंसू,
जीवन भर के गमो को
कम कर पायेंगे?

जवाब जो भी हो,
पर सच ये भी है,
जीवन स्थिर
और रुक सा नही जाता,
किसी के जाने के बाद.

Saturday, November 05, 2005

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!!!!!!

?????

Friday, November 04, 2005

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सोच को आराम देने से दर्द होगा.

जानते हो दोस्तों
दर्द दिल में छुपाकर,
कैसे मै जीता हु?
मै दौड़ता हु.
मै भागता हु.
और फ़िर सो जाता हु.
बस कभी भी रुकता नही.
शायद मै जानता हु,
सोच को आराम देने से दर्द होगा.


Friday, March 04, 2005

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आंसू जो है सूख गए.

एक दिन,
जब याद आपकी आई
तो जी भर रोया.
अगले दिन था मौसम बदल गया।

तब दोस्तों के साथ खेला भी,
और जोरो से हँसा भी.
दिन नही बदलते,
किसी के जाने से.
सच तो है यही.
पर जब भी देखता हु,
ख़ुद को आईने में,
तो दीखते है
आंसू जो है सूख गए.

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चाहता तो हु

चाहता तो हु
जंजीरे टूट जाए ये.
पर सलाखों के पीछे,
बस इन्तेज्जर करता हु.
अनभिज्ञ अब तक इससे
सलाखिएँ मोड़ सकता हु,
जंजीरे तोड़ सकता हु.

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दिवाली कैसे मनाऊ ?

एक प्रश्न ख़ुद से पूछता हु,
उत्तर पाने को जूझता हु.

दिवाली कैसे मनाऊ ?
बम पटाखों के शोर में,
क्या एक दिया जलालू उम्मीद की?
की पा लेंगे हम काबू,
प्रदुषण के बढ़ते
इस प्रकोप पर?

दिवाली कैसे मनाऊ ?
खुशियाँ कहा से खोज लाऊ ?
की जलता नही दिया
हर घर में आज भी,
तो फ़िर सौ सौ दिए क्यो जलाऊ?
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हम अपनी आजादी पा सकते है.

देख ब्रितानी सैनिक को
जब सहम गए थे स्कॉट,
और लगे थे लौटने
लेकर अपनी फौज.
तब आवाज लगायी थी वालिस ने
"आजादी, हां हमें चाहिए.
लडेंगे तो मरेंगे,
पर अब पीछे न हटेंगे,आवाज उठाने से"
किया एकजुट सभी जमीदारों को,
और लड़े वे डट के,
रह गए ब्रितानी हक्के बक्के
स्कॉट ने दिए ऐसे झटके।

इतिहास है हमसे कहता :
पा सकते है हम अपनी आज़ादी,
मुठ्ठीभर हो फ़िर भी.
अगर आवाज उठा सकते है,
हम अपनी आजादी पा सकते है.
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इक्षाये

इक्षाये अनेक :
दिल के सपने.
ख़ुद पर भरोसा.
उड़ने की चाहत.
सब कुछ पा लेने की तमन्ना.
क्या सँजोकर रखु इन्हे?

इक्षाये,कभी नामुमकिन.
कभी मुमकिन प्रतीत होती.
प्रयत्न करने को,
हमे है कहती।

और हम है कदम बढाते,
जब इक्षाये है आवाज लगाती.
तो फ़िर क्यो न रखे
अपने इक्षाओ,
अपने सपनो को,
दिल में सँजोकर.
आज की इक्षाएं
कल की हमारी उपलब्धिया जो होंगी.