कैदी से सूरज का वादा
सूरज का मुझसे वादा था,
आज मेरी गालों पे चमकेगा.
पर बादलों का उसपे घेरा है,
और दूर दूर अँधेरा है।
बादलों को छाट दिए होता.
और सूरज मुस्कान लिए होता.
पर मुठ्ठी भिचे रह जाता हूँ.
कैदी होने का शोक मनाता हूँ।
आज मेरी गालों पे चमकेगा.
पर बादलों का उसपे घेरा है,
और दूर दूर अँधेरा है।
बादलों को छाट दिए होता.
और सूरज मुस्कान लिए होता.
पर मुठ्ठी भिचे रह जाता हूँ.
कैदी होने का शोक मनाता हूँ।
1 Comments:
seems like a corollary of my earlier post :
'chahta to hoon'
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