Thursday, March 15, 2007

Bookmark and Share

कैदी से सूरज का वादा

सूरज का मुझसे वादा था,
आज मेरी गालों पे चमकेगा.
पर बादलों का उसपे घेरा है,
और दूर दूर अँधेरा है।

बादलों को छाट दिए होता.
और सूरज मुस्कान लिए होता.
पर मुठ्ठी भिचे रह जाता हूँ.
कैदी होने का शोक मनाता हूँ।

1 Comments:

Blogger Saurav Arya said...

seems like a corollary of my earlier post :
'chahta to hoon'

10:40 AM  

Post a Comment

<< Home