Tuesday, March 24, 2009

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खेल राजनीति का

क्या तुम्हारे पास
शब्दों के जाल है ?
दो रंग के चेहरे?
एक अच्छा ऐक्टर ?
और छोटा ज़मीर ?
है तो फ़िर
एक मंच है
मंच जहा कोई
कैसा भी आए
बीच का रास्ता अपना लेता है
या फ़िर उस पार ही
अपना आसिया बना लेता है
जियो अपने लिए और उनके लिए भी
या फ़िर उसका दिखावा करो
तिकड़म लगा, किसी तरह खड़े रहो
डर किस बात का ?
अगर पकड़े गए
तो भी भुला दिए जाओगे
जल्द ही फ़िर से
ख़ुद को खड़ा पाओगे
हमें भी अपने अंधेपन का
एहसास नही होता
और तुम्हे भी ख़ुद के कारनामो पर
विश्वास नही होता
ये खेल राजनीती का
क्या सचमुच है इतना गन्दा
विश्वास नही होता

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