Wednesday, July 12, 2006

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7/11

मै आफ़िस से लौट रहा था
चर्चगेट से माटूंगा
लोकल ट्रेन मे
चारो तरफ़ मैने नज़र घुमायी

मौत से दो मिनट दूर
किसी के चेहरे पे भय नही था
आफ़िस के काम निपटा लेने के बाद
चेहरो पे सैटिस्फ़ैकस्न थी
घर जाने की जल्दी थी
और आखों मे कुछ सपने थे

एक धमाके मे सारे इमोशन्श विलीन हो गए

फ़िर किसी ने
मेरे चिथडो को बटोरा
और घरवालो को बताया
मेरी मौत के बारे मे.