Sunday, June 14, 2009

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पहले से कई ज्यादा

याद है,
हम बातें करते हुए थकते ही नही थे?
अब हमारी खामोशिया
और नज़रे बातें करती है,
पहले से कई ज्यादा

अब बिना कहे-सुने ही
कहा-सुनी हो जाती है
सवाल खड़े हो जाते है,
पहले से कई ज्यादा

यू कोई चार मौसम बीते होंगे
इसी दिवार पर टंगी रहती थी अपनी तस्वीरे
दिवारे अब गुमसुम सी है,
पहले से कई ज्यादा

और ये देखो,
अभी भी कितने उत्साहित रहते है हम
पर शायद हर ढलते सूरज के साथ
लाचार होते गए है हम,
पहले से कई ज्यादा

Friday, June 12, 2009

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क्यो ??

पुराने ब्लॉग पर
धुल की एक परत क्यो नही जम जाती ?
पुराने फोटो के
अब रंग क्यो नही उड़ जाते?

यादे अब धुंधली क्यो नही होती है??