पहले से कई ज्यादा
याद है,
हम बातें करते हुए थकते ही नही थे?
अब हमारी खामोशिया
और नज़रे बातें करती है,
पहले से कई ज्यादा
अब बिना कहे-सुने ही
कहा-सुनी हो जाती है
सवाल खड़े हो जाते है,
पहले से कई ज्यादा
यू कोई चार मौसम बीते होंगे
इसी दिवार पर टंगी रहती थी अपनी तस्वीरे
दिवारे अब गुमसुम सी है,
पहले से कई ज्यादा
और ये देखो,
अभी भी कितने उत्साहित रहते है हम
पर शायद हर ढलते सूरज के साथ
लाचार होते गए है हम,
पहले से कई ज्यादा
हम बातें करते हुए थकते ही नही थे?
अब हमारी खामोशिया
और नज़रे बातें करती है,
पहले से कई ज्यादा
अब बिना कहे-सुने ही
कहा-सुनी हो जाती है
सवाल खड़े हो जाते है,
पहले से कई ज्यादा
यू कोई चार मौसम बीते होंगे
इसी दिवार पर टंगी रहती थी अपनी तस्वीरे
दिवारे अब गुमसुम सी है,
पहले से कई ज्यादा
और ये देखो,
अभी भी कितने उत्साहित रहते है हम
पर शायद हर ढलते सूरज के साथ
लाचार होते गए है हम,
पहले से कई ज्यादा