Thursday, January 04, 2007

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आवाज दो!!

कितनी चित्कारे
दब जाती है.
खो जाती है.
आवामो से दूर कही,
सन्नाटो में रह जाती है।

उन दबी हुयी चीत्कारों को,
जान दो.
हमें सुनाओ
इसु बनाओ.
टूटे, बिखरे
मिटे हुए शब्दों को,
एक आधार दो.
आवाज दो!!