पहले से कई ज्यादा
याद है,
हम बातें करते हुए थकते ही नही थे?
अब हमारी खामोशिया
और नज़रे बातें करती है,
पहले से कई ज्यादा
अब बिना कहे-सुने ही
कहा-सुनी हो जाती है
सवाल खड़े हो जाते है,
पहले से कई ज्यादा
यू कोई चार मौसम बीते होंगे
इसी दिवार पर टंगी रहती थी अपनी तस्वीरे
दिवारे अब गुमसुम सी है,
पहले से कई ज्यादा
और ये देखो,
अभी भी कितने उत्साहित रहते है हम
पर शायद हर ढलते सूरज के साथ
लाचार होते गए है हम,
पहले से कई ज्यादा
हम बातें करते हुए थकते ही नही थे?
अब हमारी खामोशिया
और नज़रे बातें करती है,
पहले से कई ज्यादा
अब बिना कहे-सुने ही
कहा-सुनी हो जाती है
सवाल खड़े हो जाते है,
पहले से कई ज्यादा
यू कोई चार मौसम बीते होंगे
इसी दिवार पर टंगी रहती थी अपनी तस्वीरे
दिवारे अब गुमसुम सी है,
पहले से कई ज्यादा
और ये देखो,
अभी भी कितने उत्साहित रहते है हम
पर शायद हर ढलते सूरज के साथ
लाचार होते गए है हम,
पहले से कई ज्यादा
5 Comments:
Bahut khub! Waah. It's probably one of your best works. I wonder what's your inspiration, but whatever it is, keep it close.
Bahut bahut achcha likha hain.
Thanks Nainy! Most of the time its the past which inspires me! and thankfully it remains with us... forever!
kya baat hai , ati sundar
interesting!
बहुत सुन्दर रचना ...
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